छत्तीसगढ़ में शराबबंदी का दावा महज सियासी ड्रामा के अलावा और कुछ भी नहीं, शराब से तबाह हो रहा परिवार, मौत की वजह बनते जा रही शराब…
हरि अग्रवाल@जांजगीर-चांपा। सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में शराबबंदी का दावा किया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस का कार्यकाल अब समाप्त होने वाला है, लेकिन शराबबंदी करने सिर्फ हीला हवाला किया जाता रहा है। शराबबंदी को लेकर सियासी भूचाल मचा हुआ है। इन सबके बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान आता है कि वो शराबबंदी नहीं, बल्कि नशाबंदी के पक्षधर है। इसके लिए समाज में वातावरण बननी चाहिए, लेकिन समाज में ऐसा वातावरण बनाने की शुरूआत आखिर कौन करेगा? सच्चाई तो यह है कि कोई भी दल हो, शराबबंदी नहीं कर सकता या करना नहीं चाहता। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह शराब से मिलने वाले बड़ा राजस्व है।
कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद शराबबंदी को लेकर पक्ष-विपक्ष में शुरू से नोंक झोक चलता रहा है। इस बीच किसी ने शराब को परंपरा से जोड़ दिया, तो किसी ने शराबबंदी होने से मौत का आंकड़ा बढ़ने का भी हवाला दिया। ऐसे कई कारण बताकर शराबबंदी की ओर किसी तरह की पहल नहीं की गई, जबकि सच्चाई तो यह है कि शराबबंदी होने से जितनी मौतें नहीं होगी, उससे कहीं ज्यादा मौतें शराब के आसानी से मिलने से हो रही है। सभी जानते हैं शराब की वजह से ही अपराधों का ग्राफ बढ़ रहा है, जिसमें लगातार जन-धन की हानि हो रही है। किसी परिवार का भले ही एक शख्स शराब पीता हो, लेकिन उस शराब से पूरा परिवार मौत से भी बद्तर जिंदगी जीने मजबूर हो जाता है। हमारे आसपास कई ऐसे उदाहरण है, जिसमें शराब ने न केवल परिवार को तबाह कर दिया, बल्कि कई बच्चों का बचपन भी छीन गया। बलौदा ब्लाक के ग्राम रसौटा का एक युवक अजय निर्मलकर का बचपन भी इसी शराब ने छीन लिया। अजय निर्मलकर बताता है कि उसका पिता शराबी था। कमाई का ज्यादातर हिस्सा वह शराब में उड़ा देता था। इतना ही नहीं, रोज वह शराब के नशे में धुत होकर घर आता था और परिवार के लोगों से मारपीट और गाली गलौज करता था। पहले ही यह परिवार तंगहाली में था, लेकिन शराब की वजह से दिनोंदिन माली हालत बद से बदतर होते गई। आखिरकार अजय निर्मलकर कक्षा आठवीं तक पढ़ाई करने के साथ मजदूरी करने लग गया। उसने परिवार का पेट पालने के लिए साइकिल में डबल रोटी बेची। कबाड़ की दुकान में मजदूरी की। शराबी पिता ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह फेर लिया, तब अजय निर्मलकर ने घर की जिम्मेदारी संभाली। अजय निर्मलकर शराब से बेहद नफरत करता है। शराब ने उसकी दुनिया ही उजाड़ दी। इसलिए छोटी सी उम्र में उसने अपनी सारी भड़ास शराब एक श्राप नामक पुस्तक लिखकर निकाल दी। उसने साफ शब्दों में कहा छत्तीसगढ़ में शराबबंदी महज सियासी ड्रामा के अलावा और कुछ भी नहीं है। एक अन्य घटना में शराब की वजह से एक नौजवान दुर्घटना में बुरी तरह चोटिल हो गया। गरीबी परिस्थति में उसका समय पर इलाज नहीं हो सका, जिसके चलते उसकी मौत हो गई। हमारे इर्द गिर्द ऐसे कई मामले आए दिन सामने आते रहते हैं, जिसकी प्रमुख वजह शराब ही होता है। ऐसी स्थिति में वह बयान की शराबबंदी से मौतों का आंकड़ा बढ़ेगा यह कहां तक उचित है चिंतन करना चाहिए।
घर की महिलाए ज्यादा पीड़ित
शराबबंदी की वजह से कितनी मौतें होगी, ये तो नहीं पता, लेकिन शराब के चलन से हजारों परिवार मौत से भी बदतर जिंदगी जीने मजबूर है। यह कहना उस महिला का है, जिसका पति शराबी है। शराब के नशे में धुत होकर रोज पति आ जाता है और गाली गलौज व मारपीट करता है। काम धाम में भी नहीं जाता। दिन भर शराब के नशे में धुत रहता है। शराब के लिए पैसा नहीं होने पर घर का सामान भी बेचने से उसका पति बाज नहीं आता। ये एक महिला की कहानी नहीं है, बल्कि ऐसी सैकड़ों हजारों महिलाएं हैं, जो शराबी पति का दंश झेल रही है। यही वजह है कि शराबबंदी की मांग को लेकर आए दिन महिलाएं आंदोलन करने अमादा है। जिस परिवार का शख्स शराब पीता है, उसकी पत्नी ही सबसे ज्यादा पीड़ित है। प्रदेश में यदि शराबबंदी के लिए वोटिंग कराया जाए, तो ज्यादातर लोग पक्षधर है। कांग्रेस ने भी इस दर्द को कहीं न कहीं महसूस अवश्य किया होगा, तभी चुनावी घोषणा पत्र में शराबबंदी का जिक्र किया था।
अपराध के ग्राफ में बढ़ोतरी
आए दिन हो रहे अपराधों पर गौर करें तो पुलिस भी मानती है कि ज्यादातर अपराध को नशे की हालत में अंजाम दिया जाता है। मारपीट, बलवा, हत्या, बलात्कार जैसे कई संगीन अपराधों में शराब की कहीं न कहीं महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जानकारों का कहना है कि शराब अक्रामक नशा है, जिसके सेवन करने के बाद संबंधित शख्स आपा खो देता है। शराबी के गुस्से को तीव्र करने में शराब अहम भूमिका निभाती है। ऐसी स्थिति में अपराध घटित होता है, जिससे जन धन की हानि होती है। छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो सड़क दुर्घटना का ग्राफ भी लगातार बढ़ रहा है। दुर्घटना के ज्यादातर मामलों में शराब की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। अब शराब पीकर वाहन चलाने से दुर्घटना की संभावना प्रबल हो जाती है। दुर्घटना में मौत का ग्राफ भी साल दर साल बढ़ रहा है। इन सबसे समझा जा सकता है कि शराब के चलन में होने से जितनी मौतें हो रही है, उतनी मौतें शराबबंदी से नहीं हो सकती।