
जांजगीर-चांपा। कभी आवागमन की सहज सुविधा प्रदान करने वाला नैला–बलौदा मार्ग आज ग्रामीणों के लिए एक भयावह रास्ता बन चुका है। भारी वाहनों की अनियंत्रित आवाजाही, सड़क की बदहाल स्थिति और जिम्मेदार विभागों की निष्क्रियता ने इस मार्ग को दुर्घटनाओं का अड्डा बना दिया है। ग्रामीणों का स्पष्ट आरोप है कि यह स्थिति केवल एक विभाग की विफलता नहीं, बल्कि समूची प्रशासनिक व्यवस्था की मिलीभगत का नतीजा है।
PWD, RTO और पुलिस विभाग पर उंगलियां उठ रही हैं, लेकिन जवाबदेही से सभी बचते नजर आ रहे हैं। “सड़क की क्षमता अनलिमिटेड है” जैसे गैरजिम्मेदाराना बयान ने लोगों के आक्रोश को और भड़का दिया है। वहीं RTO अधिकारी ग्रामीणों पर ही दोष मढ़ते नजर आए, जिससे यह सवाल उठता है कि फिर नियमों का पालन करवाना किसकी जिम्मेदारी है?
ग्रामीणों का कहना है कि जब वे अवैध रूप से चल रहे भारी ट्रेलरों का विरोध करते हैं, तो उन्हें धमकाया जाता है और पैसे की धौंस दी जाती है। कई वाहन बिना फिटनेस, बीमा और वैध दस्तावेजों के चल रहे हैं। ड्राइवर अक्सर नशे की हालत में होते हैं, जिससे आमजन का जीवन संकट में है। स्कूली बच्चों, मरीजों और आम नागरिकों की जान जोखिम में है।
ग्रामीणों ने शासन से 5 प्रमुख मांगें रखी हैं – तत्काल सड़क की मरम्मत, भारी वाहनों पर समयबद्ध प्रतिबंध, RTO और PWD की संयुक्त निरीक्षण टीम, नशे में वाहन चलाने वालों पर सख्ती और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी तय करने की मांग।यह मामला अब केवल सड़क की मरम्मत का नहीं, बल्कि शासन की संवेदनशीलता और जवाबदेही की परीक्षा बन चुका है।