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प्रदेश के पहले आईआईएचटी में फिर 34 में दो ही हुए पास, शिक्षा के गिरते स्तर को सुधारने नहीं हो रहा प्रयास, जिम्मेदार अफसर और नेता भी बने मुकदर्शक…

हरि अग्रवाल @ जांजगीर-चांपा। सरकार भारी भरकम बजट लगाकर भारतीय हाथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान का संचालन कर रही है, लेकिन देखरेख के अभाव में इस संस्थान का संचालन भगवान भरोसे हो रहा है। प्राचार्य भी महज प्रभारी है, उनकी महीने में एक-दो विजीट ही हो पाती है, जिसके चलते अधीनस्थ स्टाफ की मनमानी चरम पर है। इसका खामियाजा लाखों रुपए बहाकर यहां तालीम लेने वाले बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। हर साल यहां रिजल्ट का स्तर गिरता जा रहा है। इस बार भी तीसरे और पांचवें सेमेस्टर में सिर्फ दो बच्चे ही पास हो पाए हैं, जबकि अन्य 32 बच्चे फेल हो गए। इस पर जिम्मेदार नेताओं और अफसरों को चिंतन करने की जरूरत है।

देश के सातवें और प्रदेश के पहले भारतीय हाथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान का सेंशन जब वर्ष 2007 में हुआ, तब नेताओं में श्रेय लेने की होंड़ मच गई। लछनपुर गांव में करोड़ों रुपए की लागत से भवन तैयार कराया गया है। यहां हैंडलूम टैक्सटाइल्स टेक्नोलॉजी में तीन वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित है। खास बात यह है कि जिले में इतनी बड़ी संस्थान प्रारंभ होने के बाद जिम्मेदार नेता और अफसरों ने कभी भी यहां नजरें इनायत नहीं की, जिसका जमकर फायदा उठाया जा रहा है। यहां के ज्यादातर पद अब भी खाली है। यहां तक कॉलेज के प्राचार्य भी प्रभारी हैं। इस वजह से वो माह में एक-दो दिन ही कॉलेज आ पा रहे हैं, तो वहीं अतिथि शिक्षकों के भरोसे किसी तरह काम चलाया जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि हर साल यहां का रिजल्ट खराब आ रहा है। इस बार भी तीसरे और पांचवें सेमेस्टर में सिर्फ दो बच्चे ही ही पास हो सके हैं, जबकि पिछले साल 59 में सिर्फ 17 ही पास हो पाए थे। यहां शिक्षा के गिरते स्तर पर चिंता जताने के बजाय प्राचार्य इसके लिए बच्चों को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। ऐसी स्थिति में संस्थान संचालन के लिए सरकार का भारी भरकम बजट सिर्फ पानी में जा रहा है।

आईआईएचटी में गिनती के बच्चे
कोसा कारीगरी के लिए मशहूर जिले में इस कारोबार को उंचाई देने के ध्येय से आईआईएचटी की स्थापना की गई थी। यहां फैबरिक स्ट्रक्चर, वीविंग थ्योरी और कलर कांसेप्ट विषय पर रोजगारन्मुखी पाठ्यक्रम संचालित है। बेरोजगारी की बढ़ती भीड़ के बीच मध्यम व गरीब तबके के बच्चे लाखों रुपए खर्च कर यहां पढ़ाई करते हैं, लेकिन यहां लगातार रिजल्ट के गिरते स्तर से बच्चों का लाखों रुपए और उनका भविष्य अधर में है। यदि जिम्मेदार नेता और अफसर समय रहते इस ओर ध्यान आकृष्ट नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं, जब यहां बच्चे प्रवेश लेने से ही कतराए। अभी भी यहां महज गिनती के ही बच्चे शेष रह गए हैं।

प्राचार्य का गैरजिम्मेदाराना जवाब
इस संबंध में आईआईएचटी के प्रभारी प्राचार्य दोमू धकाते से जब बात की गई तो उनका जवाब काफी गैरजिम्मेदाराना रहा। उन्होंने कहा कि यदि बच्चे फेल हो रहे हैं तो इसके लिए वो स्वयं जिम्मेदार है। पढ़ेंगे लिखेंगे नहीं तो पास कहां से होंगे। जब उनसे पूछा गया कि कॉलेज प्रबंधन के पास  शिक्षा के गिरते स्तर को सुधारने क्या कार्ययोजना है तो उन्होंने कोई संतुष्टिपूर्वक जवाब नहीं दिया।

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