भारतीय हाथकरघा प्राद्योगिकी संस्थान का एक और कारनामा, शासन से मिला बजट, फिर भी शैक्षणिक भ्रमण के नाम पर प्रति छात्र एक-एक हजार लेने का आरोप…
हरि अग्रवाल@जांजगीर चांपा। भारतीय हाथकरघा प्राद्योगिकी संस्थान अपने कारनामे को लेकर एकबार फिर सूर्खियों में है। कोरोना संकट के बाद पहली बार संस्थान के छात्रों को शैक्षणिक भ्रमण कराया गया, लेकिन छात्रों के मुताबिक यह भ्रमण महज खानापूर्ति ही रहा। बताया जा रहा है हर साल शैक्षणिक भ्रमण के नाम पर शासन से बजट जारी होता। इसके बावजूद प्रति छात्र एक हजार रुपए लिए जाने की बात कही जा रही है। इतना ही नहीं, शैक्षणिक भ्रमण में जिन सुविधाओं का दावा किया गया था, भ्रमण के दौरान वैसा कुछ भी नहीं था। इसे लेकर छात्रों में गहरी नाराजगी है।
चांपा के लछनपुर गांव में संचालित देश के सातवें व प्रदेश के पहले भारतीय हाथकरघा प्राद्योगिकी संस्थान में रामराज है। यहां के बच्चों को कोरोना काल के बाद इंडस्ट्री विजिट कराया गया। बताया जा रहा है शैक्षणिक भ्रमण के लिए हर साल शासन से अच्छा खासा बजट जारी होता है। इसके बावजूद छात्रों का कहना है कि विजिट के नाम पर प्रति छात्र एक हजार रुपए बस किराया, भोजन, आवास के नाम पर 2 दिन का लिया गया। छात्रों का आरोप है कि संस्थान जिस उद्देश्य से उन्हें शैक्षणिक भ्रमण कराने ले गई थी, वह धरी की धरी रह गई। उन्हें इंडस्ट्री विजिट करवाने ले जाया गया था, लेकिन छात्रों के मुताबिक उन्हें कोई भी इंडस्ट्री विजिट नहीं करवाया गया। बल्कि शॉपिंग मॉल, मंदिर दर्शन और एक रायपुर के फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट घूमाकर खानापूर्ति कर दी गई। छात्रों का आरोप है कि उन्हें गर्मी को देखते हुए एसीयुक्त बस में शैक्षणिक भ्रमण कराया जाएगा। यही बोलकर उनसे एक-एक हजार रुपए लिया गया था, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। उनका आरोप है कि कॉलेज के एक टीचर अन्य छात्रों से भेदभाव करते हुए कुछ छात्रों को अपने साथ अपनी एसीयुक्त कार में से लेकर गया था। हमनें अपनी पहले की खबरों में इस बात का उल्लेख किया था कि जिस टीचर का छात्रों से अच्छा संबंध होता है, उन्हे नंबर भी अच्छे प्राप्त होते है। जबकि एक टीचर का कर्तव्य है कि सभी बच्चों को बराबर समझे पर ऐसा नहीं किया गया। जो पूरी तरह अनुचित है और बच्चो के बीच भेदभाव बढ़ाने वाला कार्य है।
गैरस्टाफ भी गया भ्रमण पर
भारतीय हाथकरघा प्राद्योगिकी संस्थान के छात्रों का आरोप है कि एक महिला टीचर अपने पति को सरकारी संस्था के शैक्षणिक भ्रमण में लेकर गई थी, जबकि वह कॉलेज का स्टाफ भी नहीं है। छात्रों का कहना है कि उस महिला टीचर ने अपने पति को सरकारी संस्था के पैसों से भोजन व रूकने की व्यवस्था कराई थी। इस पूरे मामले में उन्होंने जांच की मांग की है।
आखिर किसकी बात सही!
इस पूरे मामले में भारतीय हाथकरघा प्राद्योगिकी संस्थान के प्रभारी प्राचार्य दोमू धकाते का कहना है कि शैक्षणिक भ्रमण में किसी भी छात्र से पैसा नहीं लिया गया है, बल्कि प्रति छात्र चार सौ रुपए दिया गया है। जबकि छात्रों के मुताबिक कॉलेज के करीब 60 छात्रों से एक-एक हजार रुपए लिया गया है। आखिर किसकी बात सही है यह जांच से ही स्पष्ट हो सकेगा।
किसी को नहीं सरोकार
जांजगीर और चांपा के लोग किसी भी उपलब्धि की मांग और श्रेय लेने के लिए हायतौबा करने लगते हैं, लेकिन मिली उपलब्धि को सहेजने किसी का मुंह नहीं खुलता। कुछ इसी तरह का हाल भारतीय हाथकरघा प्राद्योगिकी संस्थान का भी है। जिम्मेदार नेता, अफसर व लोगों की उदासीनता से यह संस्थान आखिरी सांसे गिन रहा है। यहां लापरवाही चरम पर है, फिर भी इसे व्यवस्थित करने प्रयास भी न होना अपने आप में अहम है। खासकर कलेक्टर व रायपुर में बैठे उच्च अधिकारियों और नेताओ को इस ओर शीघ्र कदम उठाने की जरूरत है, अन्यथा 4 और 6 सेमेस्टर का रिजल्ट भी खराब आ सकता है। यहां रेगुलर प्रिंसिपल की भी नियुक्ति होनी चाहिए।