नेत्रहीन देख रहे टीवी, श्रवणबाधित सुन रहे रेडियो तो अस्थिबाधित चला रहे बाइक, हाईकोर्ट के आदेश पर भौतिक सत्यापन से हो रहे कई चौकाने वाले खुलासे…
जांजगीर-चांपा। दिव्यांग बनकर जिले के सरकारी स्कूलों में शिक्षक की नौकरी हथियाने वाले लोगों की असलियत अब खुलकर सामने आ रही है। दरअसल, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर के आदेश पर प्रदेशभर में शासकीय विभागों में कार्यरत दिव्यांगों से दिव्यांगता का प्रमाण पत्र लेने के साथ ही भौतिक सत्यापन की प्रक्रिया चल रही है, जिसमें कई चौकाने वाले खुलासे हो रहे हैं।
बताया जा रहा है कि प्रारंभिक जांच में ही इस बात का पता चल रहा है कि जांजगीर-चांपा जिले में नेत्रहीन बन शिक्षक की नौकरी करने वाले कई लोग जहां टेलीविजन देख रहे हैं तो वहीं कई श्रवणबाधित शिक्षक स्पष्ट रूप से रेडियो सुन पा रहे हैं और मोबाइल पर घंटों बात भी कर रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, जिन्होंने अस्थिबाधित होने का प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर शिक्षक की नौकरी हासिल की है, उनमें से अधिकांश लोग पूरे दिन सड़कों पर गियर वाली बाइक भी दौड़ा रहे हैं। गौरतलब है कि दिव्यांगता प्रमाण पत्र पेश कर शासकीय विभागों में नौकरी हासिल करने वालों के दिव्यांगता प्रमाण पत्र के सत्यापन और फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही किए जाने के संबंध में जांजगीर निवासी दिव्यांग राधाकृष्ण गोपाल सहित अन्य लोगों ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर में अपने अधिवक्ता के माध्यम से एक जनहित याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय बिलासपुर ने प्रदेशभर के सभी विभागों में कार्यरत दिव्यांगों के दिव्यांगता प्रमाण पत्र की जांच कर त्वरित कार्यवाही के आदेश प्रमुख सचिव को दिए हैं। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर के आदेश पर इन दिनों प्रदेशभर में शासकीय विभागों में कार्यरत दिव्यांगों के दिव्यांगता प्रमाण पत्र की बारीकी से छानबीन की जा रही है। इसी क्रम में जिले के नवागढ़ विकासखंड के अंतर्गत शासकीय स्कूलों में कार्यरत दिव्यांगता पेंशन लेने वालों को आठ जून 2023 को समस्त दस्तावेजों के साथ बीईओ कार्यालय बुलवाया गया था, जहां कई चैंकाने वाले खुलासे हुए। यहां दिव्यांग बनकर शिक्षक की नौकरी हथियाने वालों की पोल खुल गई। इस दौरान पता चला कि यहां पर फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर कई अपात्र सरकारी नौकरी एवं पेंशन की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। हैरानी की बात है कि जहां फर्जी सर्टिफिकेट के जरिए आरक्षण का फायदा उठाकर कई लोगों ने सरकारी नौकरियों को हासिल कर लिया तो वहीं कई लोग तो पेंशन तक ले रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि जिन लोगों ने सरकारी नौकरी हथियाने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र बनवाए और शिक्षा विभाग में नौकरी कर रहे हैं, उनका क्या होगा, क्या उन पर कार्यवाही की गाज गिरेगी, यह एक बड़ा सवाल है।
राज्य मेडिकल के सामने नहीं होते पेश
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर के आदेश के बाद फर्जी विकलांग प्रमाणपत्र के आधार पर शिक्षा विभाग में नौकरी करने वालों पर राज्य सरकार नकेल कसती जा रही है। हालांकि, सभी फर्जी शिक्षकों को पकड़ पाना बहुत ही टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। क्योंकि, विभागीय अधिकारी ही ऐसे शिक्षकों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यही वजह है कि राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड के सामने फर्जी दिव्यांग शिक्षकों को पेश नहीं किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि दिव्यांगता का सर्टिफिकेट लगाकर नौकरी कर रहे शिक्षकों को राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड के समक्ष जांच के लिए उपस्थित होने के निर्देश कई बार दिए गए हैं, लेकिन ये शिक्षक मेडिकल बोर्ड के समक्ष उपस्थित नहीं हो रहे हैं क्योंकि, उन्हें पता है कि उनके द्वारा फर्जी तरीके से विकलांग सर्टिफिकेट बनवाया गया है और उनमें विकलांगता का कोई भी लक्षण नहीं है। इस कारण से वे मेडिकल बोर्ड के समक्ष उपस्थित नहीं हो रहे हैं।
दिव्यांग सेवा संघ ने दायर की है याचिका
फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के आधार पर बड़ी संख्या में लोगों के सरकारी नौकरी पर आने की शिकायत के आधार पर छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ के राधाकृष्ण गोपाल सहित अन्य ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है, इसमें कहा गया है कि फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के आधार पर नौकरी प्राप्त करने से जो वास्तविक दिव्यांगजन हैं, उनके अधिकारों का हनन हो रहा है। इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि जब कभी भी दिव्यांग सर्टिफिकेट के दुरुपयोग की शिकायत किया जाए, तब प्राधिकृत अधिकारी इस मामले में आवश्यक कार्यवाही करे, ताकि फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के आधार पर कोई भी व्यक्ति नौकरी न कर सके।