छत्तीसगढ़जांजगीर चांपा

जीव का बंधन तभी तक है, जब तक वह ईश्वर को पकड़ने की कोशिश नहीं करता- प्रपन्नाचार्य जी

0 मनुष्य के जीवन में अक्सर ऐसा ही होता है कि वह भगवान को छोड़कर माया को पकड़ लेता है

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जांजगीर चांपा। भगवान के वामन अवतार की कथा का रसपान कराते हुए अनंत विभूषित जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य महाराज ने श्रोताओं से कहा कि- भगवान जब वामन रूप धारण कर राजा बलि के दरबार में उपस्थित हुए तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य जी ने उन्हें निर्देशित किया कि यह साक्षात विष्णु हैं इसे कुछ भी मत देना, यह सब कुछ ले लेगा! राजा बलि ने कहा -मैं कितना सौभाग्यशाली हूं जिसके दरवाजे पर सारा संसार भिखारी बनकर खड़ा है। वही जगदीश्वर आज मेरे दरवाजे पर भिक्षा मांगने आया है।

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उसने अपना सर्वस्व भगवान को दान कर दिया। जब कोई सैनिक अपने देश पर कुर्बान हो जाता है तब उसे बलिदान कहा जाता है अर्थात आज तक इस दुनिया में बलि के द्वारा दिए गए दान से बढ़कर के कोई दान नहीं हुआ। विद्वान आचार्य ने कहा कि जीव का बंधन तभी तक है जब वह ईश्वर को पकड़ने की कोशिश नहीं करता जिस दिन वह ईश्वर को पकड़ता है उसके जीवन के सारे बंधन खुल जाते हैं। भगवान ने जब कृष्णावतार में मथुरा में जन्म लिया तब जन्म के समय माता सो रही थी भगवान ने उसे रोकर जगाया। कभी-कभी सोने वाले को रो करके ही जगाया जाता है। वासुदेव जी भगवान को गोकुल पहुंचाकर नवजात बालिका को लेकर मथुरा वापस आ गये, कथन का आशय यह है कि वासुदेव जी भगवान को गोकुल में छोड़कर माया को लेकर आए। जीव के जीवन में अक्सर ऐसा ही होता है वह भगवान को छोड़कर माया को पकड़ लेता है।

यहीं उसके जीवन में अंधकार का कारण है। अवतार शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि -जो सारे जगत का पिता है वह पुत्र बनकर जन्म ले लेता है, असीम का ससीम हो जाना ही अवतार है। ध्यान रहे परमात्मा ऊपर रहते हैं, जीव नीचे निवास करता है। दोनों का मिलन तभी संभव है जब ऊपर रहने वाला नीचे उतर जाए या फिर नीचे निवास करने वाला ऊपर चढ़ जाए। ऊपर चढ़ने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है इसके लिए ज्ञानी, योगी, तपस्वी जैसे महापुरुष अपनी आध्यात्मिक शक्ति के आधार पर ईश्वर को पकड़ लेता है या फिर उसका पुरुषार्थ इतना अधिक हो जाता है कि ईश्वर ही नीचे आकर उसके समक्ष उपस्थित हो जाता है। भगवान के दो प्रमुख अवतार हैं। रामावतार में वे अयोध्या में आए और कृष्णावतार में मथुरा में, रामावतार में उन्होंने महल में जन्म लिया कृष्णावतार में कारागार में। रामअवतार दिन के मध्य समय में हुआ जबकि कृष्णावतार में वे अर्धरात्रि को आए । अर्थात राम जीवन में प्रकाश के प्रतीक हैं जब हमारे हृदय में अयोध्या का वास होता है तब जीवन भी आलोकित हो जाता है। अनेक धर्म ग्रंथ कहते हैं काम छोड़ो, क्रोध छोड़ो, लोभ छोड़ो, मोह छोड़ो, भागवत पुराण कहता है श्री कृष्ण को पकड़ लो सभी अपने आप छूट जाएंगे। यशोदा शब्द का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि यशोदा वह है जो दूसरे को यश प्रदान करें और नंद वह है जो दूसरों को आनंद प्रदान करें। वर्तमान पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने वालों पर उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि हमारे भारतीय सनातन संस्कृति में माता यशोदा, माता कौशल्या महारानी थी।

इन्होंने अपने पुत्र को अपने स्तन से दूध पान कराया वर्तमान में विशेषकर शहरी क्षेत्रों में माताएं बच्चों को बोतल में दूध पिलाती हैं बाद में बच्चा पेप्सी, कोकोकोला जैसे पेय पदार्थों को पीता है,नशा पान करने लगता है, अंतिम में जब वह बूढ़ा हो जाता है तब ग्लूकोस की बोतल चढ़ जाती है जीवन बोतल से प्रारंभ होकर बोतल में हीं समाप्त हो जाती है। लोग अपने बच्चों को शिशु पालन गृह में छोड़ जाते हैं इसीलिए बच्चा भी जब बड़ा हो जाता है तो अपने माता- पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं। याद रहे अपने बच्चों का लालन-पालन अपने सानिध्य में अपने ही हाथों से करें। हर दिन की तरह श्री शिवरीनारायण मठ पीठाधीश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज मंचासीन थे। कथा श्रवण करने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य शाकंभरी बोर्ड के अध्यक्ष रामकुमार पटेल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रघुराज प्रसाद पांडे, लक्ष्मण मुकीम, नगर पालिका जांजगीर के पूर्व उपाध्यक्ष श्रीमती नीताचुन्नू थवाईत, प्रवीण पांडे, गिरधारी यादव, परस शर्मा, विष्णु खेमका नगर पंचायत नवागढ़ के अध्यक्ष भुनेश्वर केसरवानी सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित हुए।

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