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नो एंट्री में कोयला लोड ट्रकों की धड़ल्ले से एंट्री, ग्रामीणों का फूटा गुस्सा, प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल …

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जांजगीर-चांपा। सिवनी (नैला) से बलौदा के बीच ‘नो एंट्री’ क्षेत्र में भारी वाहनों की लगातार आवाजाही ने अब स्थानीय जनता का सब्र जवाब दे दिया है। सुबह और शाम के व्यस्ततम समय में जब भारी वाहनों की आवाजाही प्रतिबंधित होती है, उस वक्त भी कोयला लोड ट्रकों की कतारें सड़कों पर दौड़ती देखी जा रही हैं। इसके कारण ग्रामीणों को जान-माल की सुरक्षा के साथ ही शोर और धूल प्रदूषण की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

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कोयले की गाड़ियां बन रही हैं सिरदर्दइस मार्ग पर नियमों को ताक पर रखकर दौड़ती भारी गाड़ियों से सड़कें बुरी तरह टूट चुकी हैं। गांवों के भीतर से गुजरती इन गाड़ियों से उड़ती धूल और तेज़ आवाज़ें बच्चों, बुजुर्गों और राहगीरों के लिए भारी मुसीबत बन चुकी हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों की सेहत और सुरक्षा पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। साथ ही, कई बार ट्रक की चपेट में आकर दुपहिया वाहन सवारों के घायल होने की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं।

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प्रशासन की चुप्पी: मिलीभगत के आरोपग्रामीणों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि इतनी गंभीर स्थिति होने के बावजूद प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। बार-बार शिकायतों और निवेदनों के बाद भी ना तो यातायात विभाग की सक्रियता दिखती है, और न ही पुलिस की निगरानी। इससे स्थानीय लोगों में यह धारणा बनने लगी है कि अधिकारियों और ट्रक संचालकों के बीच मिलीभगत है। यही कारण है कि ‘नो एंट्री’ जैसे नियमों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है।

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सड़क पर उतरे ग्रामीण, जागरूकता अभियान की शुरुआत  – इस अन्याय के खिलाफ अब गांवों में जनआंदोलन की शुरुआत हो चुकी है। हाल ही में ग्रामीणों ने एकजुट होकर सड़क पर उतरकर ट्रकों को रोकने की कोशिश की। साथ ही कई स्थानों पर जनजागरूकता अभियान चलाकर आम नागरिकों को इस समस्या की गंभीरता से अवगत कराया गया। ग्रामीणों ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन अब भी नहीं जागा तो वे उग्र आंदोलन करेंगे।

ग्रामीणों की पीड़ा: कब मिलेगा इंसाफ?एक स्थानीय नागरिक ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा, “हम हर दिन मौत के साए में जीते हैं। बच्चों की सुरक्षा, बुजुर्गों की सेहत और आम लोगों की आवाजाही—हर चीज पर संकट है। लेकिन जिम्मेदार अधिकारी चुप हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।”

अब निगाहें प्रशासन पर – यह मामला अब स्थानीय प्रशासन के लिए अग्निपरीक्षा बन गया है। अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह मामला बड़ा जन आंदोलन बन सकता है। ग्रामीणों की मांग है कि तत्काल प्रभाव से नो एंट्री नियमों को कड़ाई से लागू किया जाए, ट्रकों की आवाजाही पर निगरानी रखी जाए और दोषी ट्रांसपोर्टरों के खिलाफ कार्रवाई हो।

सवाल साफ है—कब जागेगा प्रशासन?
या फिर सिवनी (नैला) के लोग यूं ही दमघोंटू धूल और कोलाहल में जीने को मजबूर रहेंगे?

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