
जांजगीर-चांपा। बैसाखी पूर्णिमा, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का पवित्र दिन है। यह वैशाख महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है और यह बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाने के कई तरीके हैं, जो धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं को समाहित करते हैं।
श्रीहरि के नवमावतार -भगवान बुद्ध – भगवान बुद्ध को हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दस अवतारों (दशावतार) में से एक माना जाता है। दशावतार की सूची में बुद्ध का स्थान नौवां है। यह अवधारणा कि भगवान विष्णु ने बुद्ध के रूप में नवमावतार लिया, हिंदू धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है और विशेष रूप से पुराणों में उल्लेखित है।
भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख माह के पुष्य नक्षत्र में 563 ई०पू०में कपिलवस्तु के लुंबिनी ग्राम में हुआ था। इनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के शाक्य गणराज्य के प्रधान थे। इनकी माता महामाया कोलिम गणराज्य की राजकुमारी थी। इनके जन्म के सातवें दिन ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था। अतः इनका पालन पोषण मौसी प्रजपति गौतमी ने किया। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था 16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह शाक्य कुल की कन्या यशोधरा से हुआ ।इनके एक पुत्र हुए जिसका नाम राहुल रखा गया।
बुद्ध के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब वे अपने सारथी चन्ना के साथ भ्रमण में निकले थे। भ्रमण के दौरान बुद्ध जी ने सबसे पहले एक बूढ़ा व्यक्ति को देखा उसके बाद क्रमशः एक बीमार व्यक्ति, एक अर्थी और एक सन्यासी (प्रसन्न मुद्रा में) देखें इन्हीं सभी दृश्यों को देखने के बाद उन्हें रात भर नींद नहीं आई। इसी यात्रा से भगवान बुद्ध का हृदय परिवर्तन हुआ और अंतिम दृश्य संन्यास के मार्ग पर चलने का निश्चय किया। इस दृश्य को देखने के बाद भगवान बुद्ध ने राजमहल और अपनी वैवाहिक सुख सुविधाओं को छोड़कर 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया। इसके बाद वे बोधगया चलें गए ।जहां 6 वर्ष की अथक प्रयत्न और घोर तपस्या के बाद 35 वर्ष की अवस्था में वैशाख पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के तट पर पीपलवट, बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और उसी दिन से वें गौतम बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध हुए।
- भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है जिनका उद्देश्य समाज में फैले अधर्म और अज्ञान को समाप्त करना था। उन्होंने अहिंसा, करुणा और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।बुद्ध अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने आत्मज्ञान और ध्यान के माध्यम से आत्मबोध का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएं न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि हिंदू धर्म में भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
भगवान बुद्ध ने जाति-प्रथा, बलिप्रथा और अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और समानता, शांति और मानवता का संदेश फैलाया। उन्होंने मानव जीवन के सार्थक उद्देश्यों और मूल्यों की ओर ध्यान आकर्षित किया।
भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार मानना हिंदू और बौद्ध धर्मों के बीच एक सांस्कृतिक और धार्मिक संगम को दर्शाता है। यह अवधारणा हमें यह समझने में मदद करती है कि भगवान विष्णु का प्रत्येक अवतार मानवता को किसी न किसी रूप में लाभान्वित करने और समाज में सुधार लाने के उद्देश्य से हुआ है। भगवान बुद्ध के अवतार के रूप में विष्णु ने धर्म, शांति और ज्ञान का संदेश फैलाया, जो आज भी प्रासंगिक है।
बैसाखी बुद्ध पूर्णिमा पर्व का महत्व – वैशाख पूर्णिमा के पावन दिवस पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करते हुए उन्हें अर्घ्य देने से आपको बेहतर स्वास्थ्य और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन घर में सत्यनारायण भगवान की पूजा कथा श्रवण करने से पुण्य फल प्राप्त होता है। आपकी धन और संपदा में वृद्धि होती है। गंगा का स्नान करने से सभी दुखों का अंत होता है और कई जन्मों के पाप से मुक्ति मिलती है।इस दिन विभिन्न बौद्ध मठों और मंदिरों में धर्म पाठ का आयोजन होता है। भगवान बुद्ध के उपदेशों का वाचन करते हैं। श्रद्धालु भगवान बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं को सुनते हैं और उनसे प्रेरणा प्राप्त करते है
बैसाखी पूर्णिमा के दिन ध्यान और साधना के विशेष सत्र आयोजित किए जाते हैं। भक्त ध्यान करके आत्मचिंतन और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं।यह समय आत्मनिरीक्षण और आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन बौद्ध अनुयायी भिक्षुओं को भिक्षा दान करते हैं, जिसमें भोजन, वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्तुएं शामिल होती हैं। यह दान पारंपरिक और धार्मिक महत्व रखता है। गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करना, अस्पतालों में मरीजों की सेवा करना, अनाथालयों और वृद्धाश्रमों में दान देना जैसी गतिविधियों में भाग लेना।
पीपल के पेड़ के पूजन का विशेष महत्व-बुद्ध पूर्णिमा पर पीपल के पेड़ का पूजा करने का खास महत्व बताया गया है महात्मा बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बोधि वृक्ष पीपल का पेड़ है इसलिए पीपल वृक्ष की पूजा करना बहुत ही सुखद एवं फलदायी है। जल में शक्कर या गुण मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित करने और दीप प्रज्वलित करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
इस प्रकार बैसाखी पूर्णिमा एक पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं का स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है। इसे मनाने के विभिन्न तरीकों में पूजा, प्रार्थना, ध्यान, भिक्षा दान, सेवा कार्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल हैं। यह दिन हमें आत्मनिरीक्षण, अहिंसा, करुणा और ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। बैसाखी पूर्णिमा का उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ावा देता है। आप सभी को अत्यंत पावन बैशाखी बुद्ध पूर्णिमा की अनवरत बधाई एवं असंख्य शुभकामनाएं —- रविंद्र कुमार द्विवेदी,शिक्षक एवं साहित्यकार
चांपा,जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़।