

जांजगीर-चांपा। दशहरा का पर्व आते ही हमारे मन में भगवान श्रीराम और रावण का युद्ध जीवंत हो उठता है। यह दिन हमें सिखाता है कि चाहे बुराई कितनी ही बड़ी क्यों न हो, सच्चाई और साहस के सामने उसकी हार निश्चित है।


एक सर्जन होने के नाते, मैं हर दिन इसी युद्ध को अपने ऑपरेशन थिएटर में देखता हूँ।अक्सर कोई रोगी मेरे पास आता है,डर से भरा हुआ, उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ होती हैं। किसी को कैंसर है, किसी को दिल की बीमारी, किसी को गंभीर चोट लगी होती है। ये सब रोगी के जीवन में रावण की तरह खड़े होते हैं विशाल, डरावने और विनाशकारी।
पर जैसे श्रीराम ने अपने धनुष-बाण से रावण का संहार किया, वैसे ही सर्जन अपने शल्य उपकरणों और ज्ञान से इन रोगों का सामना करता है। स्कैलपेल की हर धार, कैंसर की गांठ पर किया गया हर प्रहार, ट्रॉमा से जूझ रहे मरीज की हर सिलाई – ये सब उस रावण के सिर काटने जैसा है जिसने जीवन को संकट में डाल रखा है।
कभी-कभी यह युद्ध लंबा और कठिन होता है। जैसे राम ने वनवास झेला और अनगिनत कठिनाइयों से गुज़रे, वैसे ही रोगी और उसका परिवार भी इलाज की लंबी यात्रा से गुज़रते हैं। पर हर ऑपरेशन के बाद जब रोगी की आँखों में राहत और परिवार के चेहरे पर मुस्कान लौटती है, तो लगता है कि मानो लंका दहन हो गई हो और विजय का शंख बज उठा हो।
आधुनिक चिकित्सा ही रामबाण: आज हमारे पास लेजर, लैप्रोस्कोपिक, रोबोटिक सर्जरी और ट्रांसप्लांट जैसी उन्नत तकनीकें हैं। ये आधुनिक “रामबाण” हैं जो जटिल से जटिल रोग को परास्त कर जीवन बचाने में सक्षम हैं। पर तकनीक से भी बड़ा शस्त्र है – करुणा, धैर्य और मानवता। यही असली शक्ति है जो हर सर्जन को राम बनाती है।
दशहरा का संदेश सर्जरी से जुड़ा हुआ: दशहरा हमें सिखाता है कि हर कठिनाई पर विजय संभव है। हर मरीज और हर सर्जन मिलकर रोग रूपी रावण से लड़ सकते हैं। हर ऑपरेशन थिएटर, एक युद्धभूमि है और हर सफल ऑपरेशन, अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रमाण है।
इस दशहरे पर हमें यही संकल्प लेना चाहिए कि जैसे राम ने रावण का नाश कर समाज को भयमुक्त किया, वैसे ही हम सब मिलकर रोग, पीड़ा और अज्ञानता का नाश कर एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन का निर्माण करें