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नैला-बलौदा मार्ग बना मौत का रास्ता, पीडब्ल्यूडी की लीपा-पोती से भड़का ग्रामीण आक्रोश …

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जांजगीर-चांपासिवनी से नैला-बलौदा मार्ग की जर्जर सूरत ने ग्रामीणों की जान-माल पर संकट जैसा माहौल बना दिया है। लंबे समय से टूटे किनारे (सोल्डर), गड्ढे और उखड़ी हुई सड़क पर रोज़ाना भारी वाहनों के अनियंत्रित आवागमन ने आम लोगों की जिंदगी मुश्किल कर दी है। ग्रामीणों का आरोप है कि सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) द्वारा की गई नौनिहाल मरम्मत केवल दिखावा है, गड्ढों में गिट्टी डालकर रोलर चला देना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है।

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ग्रामीणों का कहना है कि सड़क का सबसे अहम हिस्सा — सोल्डर — अभी भी टूटा पड़ा है जिस कारण छोटे वाहन और दुपहिया रोज़ झुलसने और फिसलने का खतरा झेल रहे हैं। “जब-जब कोई ओवरलोड ट्रक पास से गुजरता है, हमारी साँसें थम जाती हैं,” एक स्थानीय युवक ने बताया।स्थानीयों का आरोप है कि प्रशासन की नो-एंट्री नीति सिर्फ कागज़ों तक सीमित है। अधिकारी घोषणा कर चुके हैं कि सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक भारी वाहनों पर रोक रहेगी, पर सड़क पर ओवरलोड ट्रक और ट्रेलर दिन-रात बिना रोक-टोक दौड़ रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि ट्रैफिक पुलिस और विभागीय अमला अक्सर आंखें बंद कर देता है और भारी वाहन संचालकों तथा अधिकारियों के बीच मिलीभगत के आरोप सामने आ रहे हैं — हालांकि ये आरोप ग्रामीणों की ओर से लगाए जा रहे हैं और प्रशासन ने अब तक स्पष्ट जवाब नहीं दिया है।

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हाल में ग्रामीणों के आंदोलन की चेतावनी के बाद PWD ने मरम्मत का काम शुरू कर दिया, पर स्थानीय लोग कहते हैं कि यह केवल चक्का जाम टालने के लिए किया गया नाटक था। कई ग्रामीण अभी भी सड़क की मूल समस्या — कमजोर किनारा और नियमित निगरानी की कमी — को जस का तस पाते हैं।

नैला चौकी प्रभारी विनोद जाटवर के आश्वासन पर फिलहाल आंदोलन स्थगित रखा गया था, पर ग्रामीणों ने स्पष्ट कर दिया है कि यह स्थगन अस्थायी है। यदि मरम्मत ठोस और दीर्घकालिक नहीं हुई तो आंदोलन फिर से तेज़ हो सकता है। कुछ ग्रामीणों ने जिला प्रशासन पर भरोसा खो दिया है और उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने की तैयारी की बात भी कही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थिति में तात्कालिक उपायों के साथ-साथ मार्ग की पूरी पुनर्निर्माण योजना, समयबद्ध निगरानी और नो-एंट्री नियमों का सख्ती से पालन जरूरी है। ग्रामीणों का कहना है — “अगर सड़क पर खून बहेगा, तो उसकी ज़िम्मेदारी प्रशासन की होगी।”

इस पर जिला प्रशासन और PWD की आधिकारिक टिप्पणी उपलब्ध होते ही अपडेट दी जाएगी। ग्रामीण अब तेज़ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं — स्थायी मरम्मत, वाहनों की समय-सीमा का कड़ाई से पालन और सड़क सुरक्षा के लिए नियमित निरीक्षण।

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