छत्तीसगढ़जांजगीर चांपा

आशा ही दुःख का सबसे बड़ा कारणः आचार्य राजेन्द्र महाराज, गांधी भवन में आयोजित श्रीमद भागवत कथा का तीसरा दिन…

चांपा। भगवान हमेशा ही अपने भक्तों के वशीभूत हैं। भगवान के भक्तों में कितनी शक्ति होती हैं, वह अपने भक्ति के बल से ही भगवान को सातवें आसमान से भी नीचे उतार लेते हैं। प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह भगवान की भक्ति अवश्य करे,ं क्योंकि बिना भक्ति के सद्गति या मोक्ष संभव ही नहीं हैं स मुक्ति तो भक्ति देवी की दासी हैं।

ये बातें अहीर परिवार द्वारा स्थानीय गांधी भवन में आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन भक्ति की महिमा का वर्णन करते हुए प्रसिद्ध भागवताचार्य राजेंद्र महाराज ने व्यासपीठ से कही। उन्होंने श्रोताओं से आग्रह किया कि अपने सभी कर्मों को ही पूजा बना सकते हैं। अपने सुनियोजित कार्य करते हुए ही भगवान का स्मरण करते रहने से कर्म ही पूजा बन जाती हैं। संसार में रहते हुए सामान्य से विशिष्ट बनने का प्रयास हमें करते ही रहना चाहिए, किंतु भगवान राम को हमेशा ही अपने मन में बसा कर , क्योंकि भक्ति ही सर्वोपरि हैं, भगवान का भक्त वही हैं, जो भगवान से विभक्त नहीं हैं। उन्होंने कहा कि भगवान हमेशा अपने भक्तों का मान बढ़ाते हैं। बाल्यकाल से ही ध्रुव और प्रह्लाद ने भगवान की भक्ति कर साक्षात् भगवान का दर्शन किया था। ध्रुव की भक्ति के कारण भगवान को मधुबन में आना पड़ा था और भक्त प्रहलाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप के पूछने पर कहा कि मेरे भगवान नारायण तो इस खंभे में भी हैं। भगवान भक्तों के विश्वास को कभी नहीं तोड़ते। भक्ति के मार्ग में हमारी आस्था, भगवान पर विश्वास और फल प्राप्ति के लिए धैर्य इन तीन चीजों की नितांत आवश्यकता होती हैं। प्रह्लाद के कहने पर भगवान श्री नारायण ने नरसिंह नाथ का अलौकिक रूप धारण किया और खंभें से प्रकट होकर अपने प्रिय भक्त की रक्षा की। आचार्य राजेंद्र महाराज ने तीसरे दिन की कथा में सती प्रसंग की कथा का भी विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि जीवन में आशा ही दुःख का सबसे  कारण बन जाता हैं। इसलिए आशा और भरोसा भगवान पर ही रखना चाहिए। सती के मन में बड़ी आशा थी कि उसे अपने मायके में बड़ा सम्मान मिलेगा किंतु दक्ष के मन में भगवान शिव के लिए विरोध और नकारात्मक भाव थे। इसके कारण अपने पति का अपमान देखकर सती अग्नि कुंड में कूद गई। धर्मपत्नी और पतिव्रता स्त्री कभी अपने पति का अपमान सहन नहीं करती। सती ने अग्नि कुंड में कूदते हुए भगवान भोलेनाथ से एक ही प्रार्थना की थी कि जब भी धरती में फिर से उसका जन्म हो तो भगवान ही पति बने। अंत समय में जो मती बनती हैं वैसे ही हमारी गति भी होती हैं। वही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनी और भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए। तीसरे दिन की कथा में नपाध्यक्ष जय थवाईत, शहर कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष सुनील साधवानी, श्रीमति ज्योति किशन, पार्षद तमिन्द्र देवांगन, किशन लाल सोनी, सुनैना-गोपी बरेठ, महावीर सोनी, चंद्रकांत साहू, अतीत दुबे, अंशुमान दुबे, सन्तोष थवाईत, छत्तीसगढ़ राज्य युवा आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष कार्तिकेश्वर स्वर्णकार, छत्तीसगढ़  हाथकरधा एवं  विपणन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष कमल लाल देवांगन, पुरुषोत्तम, अर्जुनलाल सोनी, राजेंद्र सिंह ठाकुर, खेमकरण देवांगन, शशिभूषण सोनी, श्रीमती कविता देवांगन, श्रीमती आशा पाठक सहित अन्य लोग बड़ी संख्या में मौजूद थे।

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